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समाधि का पहला अनुभव

 










एक दिन गदाघर अपने कुछ मित्रों के साथ खेतों में खेलने गए !उस समय उनके पास खाने के लिए कुछ चाबल थे ! बे दिनभर अपने मित्रों के साथ खेलने में मग्न थे ! खेल  खत्म होने के बाद गदाधर चावल  खाते खाते खेतों के बीच से गुजर रहे थे !तभी अचानक मौसम बदला और उनकी नजर आसमान कि तरफ गई ! उस समय आसमान में काले बादल छा चुके थे और ढेरों की तादाद में सफेद बगुले एक कतार में उड़ते हुए चले जा रहे थे !


क्या इस प्रकार का दृश्य देखकर कोई अपनी सुधबुध खो सकता है ?नहीं ! लेकिन उस बाल्यावस्था में गदाधर के साथ ऐसा ही हुआ था! इस दृश्य को देखकर बे इतने आश्चर्य से भर गए कि अपनी सुध बुध खो बैठे और जमीन पर गिर पड़े !


।              शरीर एक अजूबा

अपने प्रतिदिन के जीवन में हम ऐसे कई दृश्य देखते हे, मगर उस समय हमारे  मन में जो विचार उठाते हे,उनसे हमारा कोई तालमेल नहीं होता इसीलिए ऐसे दृश्य देखकर भी हम आश्चर्य नहीं करते !मगर जब नन्हें गदाधर ने बह दृश्य देखा तो उसे ऐसा महसूस हुआ ,मानो कोई जादूगर जादू दिखा रहा हो! जादूगर का जादू देखकर आश्चर्य से लोगों की चीख निकल जाती है क्योंकि उस समय लोगों के सामने कोई ऐसा दृश्य होता है, जो उनकी कल्पना से परे होता है !लेकिन यदि आपके सामने इससे भी  सो गुना ज्यादा या हजार गुना ज्यादा आश्चर्य जनक दृश्य प्रकट हो जाए तो आप खुद ही यह अंदाज लगा सकते है कि आपकी हालत क्या होगी ! इसका अर्थ यह है कि जब शरीर किसी दृश्य को देखकर होनेवाला आश्चर्य सह नहीं पाता तो बह रूपांतरण (ट्रांसफारमेशन)की अवस्था में चला जाता है !

इंसान का शरीर किसी अजूबे से कम नहीं है और इस अजूबे का निर्माण कुदरत ने सिर्फ पृथ्वी पर किया है ! ऐसा कोई अजूबा आज तक किसी अन्य ग्रह पर खोजा नहीं जा सका हे ! यह अजूबा इसलिए हे क्योंकि इंसान के शरीर के अंदर ऐसी ब्यबस्ता की गई है कि एक स्तर पर जाने के बाद उसका  रूपांतरण हो जाए ! ऐसी आश्चर्य जनक  ब्यबस्ता किसी अन्य जीव में देखने नहीं मिलती !


जैसे : जब किसी  इंसान को शारीरिक स्तर पर बहुत तकलीफ़ दी जाती है तो बह उस तकलीफ़ को तब तक सहता हे ,जब तक उसमे सहनशक्ति होती है ! जिस समय उसकी सहनशक्ति समाप्त हो जाती है,तब बह बेहोश हो जाता है यानी उसके शरीर का रूपांतरण हो जाता है ! इंसान का शरीर एक मशीन हे,जिसे दिमाग से संकेत (सिंगनल) मिलते हे! इंसान की सहनशक्ति समाप्त होने पर उसकी सुरक्षा के लिए, दिमाग  उसे बेहोश होने का संकेत दे देता है !


इसी तरह आश्चर्य का भी एक स्तर होता है !जब आश्चर्य शरीर की सहनशक्ति से कई गुना अधिक होता है तो समाधि की अवस्था आ जाती है !रामकृष्ण परमहंस को भी बचपन में आसमान की ओर देखकर  ऐसी ही अवस्था का  अनुभव हुआ !

यह दृश्य देखकर गदाधर को पहली बार समाधि का अनुभव हुआ !बे जमीन पर बाहर की दुनिया से अचेत होकर गिर पड़े !उनके मित्र उन्हें उसी अवस्था में  उठाकर घर ले गए !फिर मुंह पर पानी के  छिटे मारकर उन्हें जगाया गया और पूछा गया की ' गदाधर तुम अचानक बेहोश कैसे हो गए ? उन्होंने कहा , पता नहीं मुझे अचानक क्या हो गया था !


आगे बड़े होने के बाद शीरामकृष्णा ने अपनी जीवनी में अपने इस पहले समाधि अनुभव का खुलासा कुछ इस प्रकार किया हे ,कुदरत का बह करिश्मा देखकर में आश्चर्य से  भर गया था ! कुछ देर पहले आसमान साफ था,हम सभी खेल रहे थे लेकिन अचानक आसमान में काले बादल छा गए ! प्रकृति माता ने जो खेल दिखाया ,उससे में इतना आश्चर्य से भर गया कि सुधबूध ही खो बैठा !

रामकृष्ण परमहंस के जीवन में समाधि कि इस पहली घटना को पढकर पहले आपका मन यही सोचेगा की  इसमें ऐसी क्या बात  थी कि किसी को समाधि का अनुभव हो जाए ? क्योंकि इंसान का मन तो इसी तरह से सोचता है लेकिन यहां मुख्य बात नन्हें गदाधर के अंदर मौजूद मासूम भक्ति की थी ! उस समय जो कृपा बरसी ,गदाधर में उसे प्राप्त करने के लिए भरपूर ग्रहणशीलता थी !गदाधर ने उसे बिना उसका रंग बदले ग्रहण कर लिया ! बरना इंसान में अहंकार की छाया इतनी गहरी होती है कि अगर उस पर कृपा बरसती भी  हे तो या तो बह उसे ग्रहण ही नहीं कर पाता और अगर करता भी हे तो कृपा उसके भीतरी अहंकार के रंग में  रंगकर अपना रूप बदल लेती है !


अनुभव का नाम काली माता


इंसान पर ऐसी कृपा बरस पाए, इसके लिए उसमें पर्याप्त ग्रहणशीलता होनी चाहिए ! पहली बार समाधि अबस्था का अनुभव करने के बाद गदाधर प्रकृति माता के प्रेमी बने ! उस प्रकृति माता को ही उन्होंने काली माता का नाम दे दिया !

ग्रहणशीलता के अभाव में लोग ईश्वर को   बिना रूप के नहीं समझ पाते और रूप भी ऐसा  जो उनकी ईश्वर  की कल्पना के अनुसार हो ! आज तक जिन महापुरुषों को भी अपने होने का एहसास (आत्मसाक्षात्कार) हुआ है, उन्होंने उसे स्व-  अनुभव ,चैतन्य या कोई न कोई ऐसा नाम जरूर दिया हे ! आम तौर पर यह एक ऐसा नाम होता है ,जो लोक कल्याण के लिए ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल हो पाए ! 

 

रामकृष्ण परमहंस ने अपने अनुभव को काली माता का नाम दिया ! क्योंकि उस समय बंगाल में काली माता की पूजा होती थी ! आज भी होती है ! लोगों को तो ऐसे प्रचलित शब्द या मशहूर नाम ही ज्यादा पसंद आते हैं तथा आसान भी लगते हे !काली माता का रूप देखकर लोग उस अनुभव की सराहना कर पाएं और लोगों को भक्ति करने का मौका मिले ! भक्ति का अर्थ ही हे ,जहां भक्त सराहना ब आश्चर्य करता है और समाधि में चला जाता है ! श्रीरामकृष्ण परमहंस सभी को यह अनुभव देना चाहते थे इसीलिए उन्होंने जीवनभर लोगों को भक्ति के भक्त बनने का रास्ता दिखाया !


   

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