गदाधर की भक्ति को कुछ ही लोग समझ पा रहे थे लेकिन कुछ लोग इसे पागलपन का नाम दे रहे थे।मगर ऐसी किसी भी बात से गदाधर को कोई फर्क नहीं पड़ता था।वे तो अपनी भक्ति में तल्लीन थे।
एक दिन गदाधर काली माता के सामने बैठे थे और बड़े व्याकुल लग रहे थे क्योंकि उस समय उन्हें मां का दर्शन नहीं हो रहा था।चूंकि शरीर की अवस्था हमेशा अलग अलग होती है इसलिए कभी अनुभव समझ में आता है तो कभी समझ में नहीं आता।कभी कभी किसी बीमारी या शारीरिक तकलीफ के कारण भी ऐसा होता है।गदाधर मंदिर में यूं ही बैठे व्याकुल हो रहे थे कि तभी अचानक उनकी नजर दीवार पर टंगी हुई तलवार पर गई।उस तलवार को देखकर उन्हें विचार आया कि में मां को अपनी गर्दन समर्पित कर देता हूं।इस एक विचार मात्र से वे भाव समाधि की अवस्था में चले गए और उन्हें लगा ,जैसे उनकी गर्दन सचमुच कट गई हो।
मान लीजिए अगर आपकी भीतर ऐसा कोई विचार उठे तो ,?दरअसल अगर आप सच्चे हृदय से अपनी गर्दन काटकर समर्पित करने की कल्पना करेंगे तो आपके अंदर विचार उठना बंद हो जाएंगे ।क्योंकि इस एक विचार से ही आपका शरीर सून्न हो जाएगा और बाकी सारे विचार गायब हो जाएंगे ।इसी को निर्विचार अवस्था कहते है। लोगों को निर्विचार अवस्था तक पहुंचाने में कभी कभी कुछ विशेष विधियां सहयोग करती है लेकिन गदाधर सहज ही इस अवस्था में चले गए।उन्हें इसके लिए किसी विधि या मार्गदर्शन की जरूरत नहीं पड़ी।कभी कभी लोग अचानक आनेवाले निर्विचार अवस्था को समझ नहीं पाते। वे इस अनुभव को पहचान नहीं पाते इसीलिए कदम दर कदम ज्ञान मिलना आवश्यक होता है।
अपनी जीवनी में रामकृष्ण परमहंस ने अचानक हुए इस अनुभव का वर्णन इस प्रकार किया है,उस वक्त मुझे काली माता की मूर्ति का दर्शन हुआ और फिर वह भी गायब हो गई...मंदिर की दीवारें दूर जाने लगीं...और एक एक करके दरवाजे खिड़कियां सब गायब होने लगे...चारों तरफ प्रकाश की लहरें फेल गई, मानो कोई प्रकाश का समुंदर हो...मुझे ऐसा लगा कि प्रकाश की वे लहरें मेरी ही तरफ बढ़ रही है...और फिर एक समय ऐसा आया कि में उन लहरों में पूरा डूब गया।
इस अनुभव के बाद गदाधर की भक्ति और बढ़ गई। अब उनके लिए पूजा पाठ करना कठिन होने लगा।अब वे जो भी पूजा पाठ करते ,वह पहले के मुकाबले और अलग तरीके से करते।उनकी ऊटपटांग हरकतें देखकर उन्हें वेद्य को दिखाया गया । वेद्य ने जांच की और कहा कि इन्हें वायुरोग हुआ है। जबकि वास्तविकता यह थी कि वेद्य को असली बात पता ही नहीं थी । उसे यह नहीं मालूम था कि गदाधर को वायूरोग नहीं बल्कि भक्ति वियोग नामक रोग हुआ है।
भक्ति के वियोग में ही वे काली मां के सामने खड़े होते और मूर्ति की नाक के आगे अपना हाथ रखकर यह निरीक्षण करते थे कि माता सांस ले रही हे या नहीं ?फिर वे बाहर जाकर लोगों से कहते कि माता आजकल मेरे अंदर से सांस ले रही हे।यानी वे अपनी सांसों को भी ऐसे देखते थे,जैसे गदाधर नहीं बल्कि माता ही उनके शरीर से सांसे ले रही है।उस समय यह सब ठीक इसी तरह हुआ था या नहीं ,यह जांचना तो संभव नहीं है लेकिन फिर भी लोग अपने अपने तरीके से उस समय का वर्णन करते है।
रामकृष्ण परमहंस (गदाधर) की निष्कपट भक्ति
काली माता के सामने जो प्रसाद चढ़ाया जाता था,गदाधर वह प्रसाद पहले माता को खिलाना चाहते थे। इसलिए वे अपने हाथ में प्रसाद लेकर माता के मुंह पर रखते और कहते की खाओ। और फिर कहते ,क्या कहा? पहले में खाऊं?और फिर वे खुद ही प्रसाद खाने लगते।
एक दिन मंदिर में एक बिल्ली आ गई।जब गदाधर ने उस बिल्ली को देखा तो पूरा प्रसाद उसे ही खिला दिया।उन्होंने कहा कि माता ही बिल्ली का रूप लेकर मंदिर में आई है।यह देखकर मंदिर में उपस्थित लोगों को बहुत बुरा लगा।उन्होंने गदाधर की इस हरकत को अपना अपमान समझा कि जो प्रसाद हमारे लिए था,उस एक बिल्ली को क्यों खिला दिया गया।
इन घटनाओं से पता चलता है कि गदाधर की भक्ति कितनी निष्कपट और मासूम थी। उनकी ऐसी हरकतें लगातार बढ़ती जा रही थी। यह देखकर अब हृदय राम को भी शंका होने लगी थी कि कहीं गदाधर सचमुच पागल तो नहीं हो गए है?
आज भक्ति के इस स्वरूप को समझने वाले लोग बहुत कम है।गदाधर की सारी हरकतें बच्चों जैसे होती थी।उनमें मासूमियत थी लेकिन लोग अपने अंज्ञान के कारण उनकी मासूमियत को उनका पागलपन मान लेते थे।
आपने देखा होगा कि बच्चे ऐसी कई छोटी मोटी चीजें करते है,जिसका कोई अर्थ या तुक नहीं होता।चूंकि बच्चों में सच्चाई होती है और उनके अंदर कपट नहीं होता इसलिए वे मासूमियत से भरे होते हैं। आपने देखा होगा कि कई बार बच्चों से कोई सबाल पूछने पर वे इतना मासूमियत भरा जवाब देते है कि आपको उन पर प्यार आ जाता है।जैसे : एक बार एक घर में कुछ मेहमान आए । उन्होंने देखा कि घर का बच्चा एक बिल्ली के साथ खेल रहा है।जब उस बिल्ली को मेहमानों के सामने लाया जाता है तो मेहमान उस बच्चे से कहते हैं, हमारे घर में बहुत सारे चुहे हैं, क्या हम एक दिन आपकी बिल्ली को अपने घर ले जाएं ?इस बच्चा जवाब देता है, नहीं नहीं , हम अपनी बिल्ली आपको नहीं देंगे।आप अपने चूहों को ही हमारे घर पर क्यों नहीं ले आते ?आप समझ सकते हैं कि बच्चे ने कितनी मासूमियत से यह बात बोल दी। क्योंकि उसे नहीं पता कि मेहमान उसकी बिल्ली को इसलिए मांग रहे हैं क्योंकि बिल्ली के जाने से उनके घर के सारे चूहे भाग जाएंगे।
रामकृष्ण परमहंस (गदाधर )की मासूमियत
एक बार एक बच्चा ब्रेड खा रहा था और साथ में थोड़ा थोड़ा दूध भी पी रहा था।किसी ने उस बच्चे से पूछा,अरे, तुम ब्रेड को दूध में डुबोकर क्यों नहीं खाते? इस पर उसने जवाब दिया,जब में ब्रेड को दूध में डुबोता हूं तो यह ब्रेड ही पूरा दूध पी लेती है।फिर में क्या पीऊंगा? इसलिए में पहले ब्रेड खाता हूं और फिर दूध पिता हूं।बच्चों के इस तरह के भाव को समझने के लिए हमें उनकी मासूमियत को समझना होता है।ठीक यही बात गदाधर के साथ भी थी।उनकी हरकतों को समझने के लिए पहले उनकी मासूमियत को समझना जरूरी था।
गदाधर भी बच्चों जैसी मासूमियत के साथ अपनी बात कहते थे।एक बार गदाधर उस मंच पर चढ़ गए, जिस पर माता की मूर्ति रखी गई थी। उन्होंने माता का हाथ पकड़ा और कहने लगे, चलो , हम मिलकर नृत्य करते है।इसी प्रकार माता को प्रसाद चढ़ाने या खिलाने जैसे सभी क्रियाओं को वे बच्चों की तरह ही एक अलग आयाम से देखते थे।