रामकृष्ण परमहंस के जीवन भक्ति के साथ आगे बढ़ रहा था।जब कोई उन्हें भेंट के रूप में चादर या कम्बल वगैरह कुछ देता तो वे उसे खुसी खुशी स्वीकार कर लेते।लेकिन फिर वे उस भेंट को अपने पैरों के नीचे कुचल देते और कहते कि ' क्या ये चादर या कम्बल मुझे माता से मिला सकते है? अगर नहीं तो ऐसी चीजों का मेरे लिए कोई महत्व नहीं है।दरअसल उनकी यह बात लोगों के लिए एक इशारा थी । लोग सांसारिक चीजों की और इतना आकर्षित होते रहते है लेकिन गदाधर (रामकृष्ण) के जीवन से समझ में आता है कि एक भक्त उन्हीं चीजों को किस नजरिए से देखता है ।
समय बीतता रहा और कुछ दिनों के बाद गदाधर के साथ उनके दूसरे भाई रामेश्वर के बेटे अक्षय को भी मंदिर में काम काज के लिए रख लिया गया। क्योंकि गदाधर को बायुरोग के कारण तकलीफ होती रहती थी इसलिए कुछ दिनों बाद उन्हें वापस उनके गांव भेज दिया गया ताकि उनकी तबीयत में कुछ सुधार हो सके ।उनकी इस बीमारी से उनकी मा बहुत चिंतित रहती थी ।वे गदाधर को नियमित रूप से वेद्य के पास ले जाती और इसकी अलावा झड़ फूंक ,तंत्र मंत्र इलाज के सारे तरीकों का सहारा ले रही थी। लेकिन फिर भी गदाधर बीच बीच में कोई न कोई ऊटपटांग हरकत करते रहते,जिससे लोगों को लगता कि अभी भी उनमें कुछ दोष बाकी है ।दरअसल वे कभी जमीन पर अपने हाथ पांव पटकते तो कभी सिर पटकते और कभी कभी तो घंटो तक मा मा कहकर पुकारते रहते ।जबकि उनकी मा उनके पास ही होती थी और उनसे कहती रहती थी कि '। में तो यही पर हूं, फिर क्यों अपना सिर पटक रहे हो ? उनकी इसी हालत को देखकर लोग उन्हें रोगी समझा करते थे
फिर एक समय ऐसा आया कि उन्हें नींद अनी बंद हो गई ।इस तरह करीब छह महीने बीत गए यानी वे छह महीने से सोए नहीं थे ।कभी कभी तो यह हालत हो जाती कि उनकी आंखे लगातार खुली रहती और उन्हें बंद करने के लिए भी उंगली का सहारा लेना पड़ता ।ऐसी स्तिथि में भी वे काली मा का स्मरण करते रहते और कहते ,मां , क्या तुम केवल एक पत्थर कि मूर्ति हो , क्या तुम मुझे दर्शन नहीं दे सकती? जब तुमने मेरे भाई को दर्शन दिया तो अब मुझे क्यों नहीं दे रही हो ? अगर में तुम्हारा दर्शन न कर संकु तो मेरे इस जीवन का क्या फायदा ?
जब भी उन्हें मां का दर्शन नहीं मिलता तो वे कहते ,आज का दिन बेकार गया, माता का दर्शन ही नहीं हुआ ।अच्छा होगा कि अब इस शरीर को ही खत्म कर दिया जाए ।फिर जब दर्शन मिल जाता तो कहते , होने दो मेरे शरीर को तकलीफ । वैसे भी में शरीर में कहां हूं ।यानी वे दोनों तरह की बातें किया करते थे। कभी माता को उलाहना देते और कभी कहते की ' तुमको जो करना है,करो, जितना मेरे शरीर को तकलीफ देनी है दो क्योंकि वैसे भी ,में तो शरीर हूं ही नहीं ।
गदाधर की एक और आदत ऐसी थी ,जो लोगों को जरा अजीब लगती थी ।दरअसल उन्हें लोगों से दूर अकेले में बैठना बड़ा पसंद था ।इसलिए कभी कभी वे कमरपुकुर के श्मशान में जाकर बैठे जाते थे ।यह देखकर उनके भाई रामेश्वर को बहुत चिंता होती थी ।कभी कभी जब गदाधर काफी देर तक घर नहीं लौट ते तो रामेश्वर उन्हें बुलाने श्मशान के पास जाते और बाहर से ही आवाज देते,गदाधर तुम कहां हो . यह सुनकर गदाधर तुरंत कहते ,वहीं रुको में बाहर आता हूं ।दरअसल वे नहीं चाहते थे कि उनका भाई उन्हें लेने श्मशान के अंदर आए और कुछ देखकर बेवजह डर जाए ।इसलिए वे खुद ही श्मशान के बाहर आ जाते थे ।
कुछ दिनों बाद जब गदाधर की तबीयत में थोड़ा सुधार आने लगा तो उनकी मा को उनकी शादी कराने का विचार आया ।जल्द ही उन्होंने 6-7साल की उम्र वाली एक लड़की के साथ गदाधर की शादी करवा दी ।उस समय गदाधर की उम्र चोबीस साल से ज्यादा थी।उस जमाने में इतनी कम उम्र में लड़कियों की शादी होना आम बात थी ।
शादी के बाद जब लड़की के चाचा को पता चला की गदाधर के घरवालों ने शादी में दुल्हन को जो गहने पहनाए थे,वे भी इधर उधर से मांगकर लाए थे । इससे वे नाराज होकर दुल्हन को अपने साथ वापस ले गए ।इस घटना से गदाधर की मा बहुत दुखी हुई । लेकिन गदाधर ने उन्हें समझाया और कहा कि ' तुम घबराओ मत ।' इस घटना के पश्चात गदाधर फिर से कोलकाता चले गए ।
कुछ लोगों के दिमाग में यह बात स्पष्ट होती है कि उन्हें कैसा जीवन जीना चाहिए ।वे कदम दर कदम उसी जीवन की और आगे बढ़ते जाते है । आम तौर पर ऐसे लोगों की शादी भी ऐसे ही परिवार में होती है,जहां उन्हें आगे बढ़ने का मौका मिले । फिर धीरे धीरे वे ऐसे जीवन में प्रवेश करते है, जैसा वे जीना चाहते है । गदाधर की शादी भी शारदादेवी के साथ होना,यह ईश्वर की एक लीला हो थी ।जिस वजह से गदाधर वैसा जीवन
जी पाए, जैसा वे जीना चाहते थे । लेकिन हर एक के साथ ऐसा नहीं होता क्योंकि ज्यादातर लोग आस पास के अच्छे लगने वाले दृश्यों को देखकर अपनी प्रार्थनाएं बदलते रहते है ।जिससे वे लंबे समय तक अपने जीवन में गलत चीजों को ही आकर्षित करते है ।जब ऐसी गलत चीजें जीवन में आती है तो उनके जीवन का काफी समय उन्हें सुलझाने में ही बीत जाता है ।फिर सही तरीके से जीने के लिए उनके पास सिर्फ थोड़ा सा ही समय बचता है ।
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