दक्षिणेश्वर के काली माता मंदिर के बगल में एक छोटा सा जंगल था। श्रीरामकृष्ण परमहंस प्रतिदिन वहां ध्यान करने जाते थे।दोपहर में जब मंदिर बंद किया जाता, उस समय श्रीरामकृष्ण परमहंस अपना जनेऊ उतारकर बगल में रख देते और ध्यान में बैठ जाते थे।जबकि उनका जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ था और सदैव जनेऊ पहनना हर ब्राह्मण कि निशानी है।
एक दिन उनके भांजे को यह बात पता चली तो उसने पूछा ,आप अपना जनेऊ क्यों उतार देते है? यह धागा तो हर ब्राह्मण कि निशानी है और आप इसी निशानी को उतारकर रख देते है? इस पर श्रीरामकृष्ण परमहंस ने कहा,' जब में ध्यान में बैठता हूं,तब में किसी से भी श्रेष्ठ नहीं होता हूं और न ही कोई किसी से श्रेष्ठ होता है।सभी एक होते है।यह जनेऊ उतारकर में श्रेष्ठता के भाव से मुक्त हो जाता हूं।
यह 18बी शताब्दी की बात है,तब लोग जाती पाती में बहुत बिश्वास करते थे और जाती के नाम पर स्वयं को एक दूसरे से श्रेष्ठ साबित करने में लगे रहते थे।उस समय लोग इस तरह की बातें करते थे कि ,में फलां कुल का हूं,,फलां जाती का हूं।जबकि उच्च जाती का होने से लोग आदर भले ही दे देते हों लेकिन इससे इंसान भक्ति से दूर हो जाता है।उस समय पूजा पाठ करने वालों को या संस्कृत सिखाने बालों को भी श्रेष्ठ समझा जाता था।लेकिन यह सब करके भी यदि इंसान को भक्ति की पहचान न हो तो वह कभी श्रेष्ठ होने के अहंकार से मुक्त नहीं हो सकता।
उस समय गदाधर सत्य के मार्ग पर आगे बढ़ रहे थे और जाती पाती कि धारणा ओं से ऊपर उठ चुके थे ।वे निरंतर मनन चिंतन कर रहे थे और नई चीजें सीख रहे थे। वे श्रेष्ठ ता के भाव से इसलिए मुक्त हो सके क्योंकि वे भक्ति की उच्चता को समझ पा रहे थे।वे मंदिर में आनेवाले सभी लोगों को एक जैसा ही समझते थे और सभी के साथ एक जैसा ही व्यवहार करते थे।
मंदिर में गदाधर की निर्युक्ती के बाद जब रानी रासमणि को माथुर नाथ द्वारा यह पता चला की मंदिर में पूजा पाठ करने के लिए एक सच्चा पुजारी मिल गया है।तो वे भी मंदिर में पूजा करने आई ।जब पूजा और आरती की तैयार चल रही थी ,तभी गदाधर ने रानी को डांटते हुए कहा कि मंदिर में भी यही बातें सोचने आई हो क्या? यह देखकर रानी के नौकर गदाधर को मारने के लिए झपटे लेकिन रानी ने सबको रोक दिया क्योंकि वे बहुत समझदार महिला थी।वे कई लोगों की सेबा करती थी और बड़े बड़े लोगों के बीच उठती बैठती थी।इसके अलावा वे लोगों के कल्याण और उनके हक के लिए कुछ अंग्रेजों के साथ कई कानूनन मुकदमे (केस) भी लड़ रही थी।
गदाधर के डांटने के बाद उनकी समझ में आया कि पूजा और आरती के समय भी उनके दिमाग में अपने कानूनी मसलों के बारे में ही विचार चल रहे थे।यह समझ प्राप्त होने के बाद रानी ने उनसे कहा ,'आपके माध्यम से काली मा ने ही मुझे डांटा हे।
जब भगवान की पूजा करते समय इंसान का अहंकार विलीन हो जाता है,तब ईश्वर ही उसके भीतर से बोलता है।रानी समझदार थी इसलिए उनके लिए केबल एक इशारा ही काफी था।अब उन्हें विश्वास हो गया था कि इस मंदिर के लिए गदाधर ही सबसे श्रेष्ठ पुजारी हे।पूजा के बाद वे संतुष्टि के भाव के साथ वहां से वापस लौटी।
गदाधर की अभेद भक्ति
एक दिन मंदिर में वहां का पुजारी राधा कृष्ण मूर्त्ति कि साफ सफाई कर रहा था।अचानक उसके हाथों से कृष्ण की मूर्ति गिरकर टूट गई।अब रानी के सामने यह प्रश्न था कि इस टूटी हुई मूर्ति का क्या किया जाए? क्योंकि कई पुजारियों का कहना था कि खंडित मूर्ति को मंदिर में नहीं रख सकते इसलिए इसे गंगा में प्रवाहित कर देना चाहिए।मगर रानी को वह मूर्ति पसंद थी इसलिए उन्होंने कहा कि एक बार गदाधर से भी पूछ लें।गदाधर से जब इसका हल पूछा गया तो उन्होंने रानी को जवाब दिया,अगर किसी कारणवश रानी के जमाई की टांग टूट जाए तो क्या रानी उसे घर से बाहर निकाल देंगे या उसकी टांग पर इलाज करवाकर उसे ठीक करेगी?यह जवाब सुनकर रानी बहुत खुश हुई।
आखिरकार रानी ने उस मूर्ति की मरम्मत करवाकर उसे फिर से मंदिर में स्थापित करवा दिया।लेकिन लोगों को खंडित मूर्ति को मंदिर में स्थापित करना पसंद नहीं आया।इस पर गदाधर ने लोगों से कहा कि जो अभेद है,वह कैसे टूट सकता है?इस घटना से लोगों को समझ में आया कि गदाधर की सोच और उनकी भक्ति भी बहुत अलग हे।रानी रासमणि के जमाई माथुर नाथ को गदाधर का कार्य बहुत पसंद था।गदाधर अपने जीवन में इसी तरह आगे बढ़ रहे थे और साथ ही सत्य कि खोज में भी जुटे हुए थे।लेकिन एक दिन अचानक उनके पिता समान भाई रामकुमार की भी मृत्यु हो गई।यह गदाधर के लिए बहुत बड़ा झटका था।भाई की अचानक हुई मृत्यु ने उन्हें झकझोरकर रख दिया।
इंसान के जीवन में होनेवाली ऐसी घटनाएं यूं तो बड़ी नकारात्मक प्रतीत होती है लेकिन वास्तव में वे उसके जीवन को संवार रही होती है।हालांकि उस समय इंसान को यह बात समझ में नहीं आती।जैसे सोने के गहने बनाने के लिए उसमें थोड़ी सी मात्रा में अन्य धातु भी मिलाई जाती है।क्योंकि शुद्ध सोने से गहने नहीं बनाए जा सकते।अन्य धातु मिलाकर ही सोने को मनचाहा आकार दिया जा सकता है और गहनों का निर्माण संभव होता है।शुद्ध मन के गदाधर के जीवन की ये नकारात्मक घटनाएं उसी खोट धातु के समान थीं,जो उनके जीवन को एक आकार दे रही थीं।इसलिए जीवन में आनेवाली किसी भी घटना को नकारात्मक न जरिए से देखने के बजाय उस अन्य धातु की तरह देखना चाहिए,जो जीवन को एक निश्चित आकार देने के लिए घटती है।
0 टिप्पणियाँ
Please do not enter any spam link in the comment box